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Guru Jambheshwar Ji

(संक्षिप्त जीवन परिचय) जन्म : वि. संवत् 1508 भाद्रपद बदी 8 कृष्णजन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि कृतिका नक्षत्रमें (सन् 1451) ग्राम : पींपासर जिला नागौर (राज.) पिताजी : ठाकुर श्री लोहटजी पंवार काकाजी : श्री पुल्होजी पंवार(इनको प्रथम बिश्नोई बनाया था।) बुआ : तांतूदेवी दादाजी : श्री रावलसिंह सिरदार(रोलोजी) उमट पंवार ये महाराजा विक्रमादित्य के वंश की 42वीं पीढ़ी में थे। ननिहाल : ग्राम छापर (वर्तमानतालछापर) जिला चुरू (राज.) माताजी : हंसा (केसर देवी) नानाजी : श्री मोहकमसिंह भाटी (खिलेरी) जब ये ७ सात वर्ष की अवस्था में हुए तब इन्हेंगाय चराने के काम में लगाया थाये अपनी गायों को अपने आसपास के जंगलों में चराया करते थे। जब ये लगभग १६ सौलह वर्ष के हुए तब इनकी भेंट गुरु गोरखनाथजी से हुई जिनसे की ज्ञान प्राप्त किया था। श्री गुरु जम्भेश्वरजी री मुंह से निकली शब्दवाणी से सिध्द होता है कि इन्होंने कोई विवाह नहीं किया और अखंड ब्रम्हचारी रहे। जिनके सामने इनके माता पिता को भी झुकना पडा।इनके पिता लोहटजी का देहान्त सम्वत १५४० में हो गया था. तथा कुछ समय पश्चात इनकी माता हांसादेवीभी चल बसी थी। वैसी दशा में गुरु जम्भेश्वरजी अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति को परित्याग क़र विक्रमी सम्वत् 1542 में समराथल धोरे पर हरी कंकेड़ी के नीचे आसन लगाया तथा 51 वर्ष तक अमृतमयी शब्द वाणी का कथन किया तथा विभिन्न प्रकार के चमत्कार दिखाकर जड़ बुद्धि लोगों को धर्म मार्ग पर लगाकर उनका उद्धार किया। समराथल पर रहते हुए इन्होंने संवत 1542 की कार्तिक वदि अमावस्या सोमवार के दिन विश्नोईसंप्रदाय को बीस और नव धर्मो की शिक्षा दी औरवेदों और मंत्रों द्वारा पाहाल कलश की स्थापना करके पाहाल रुपी अमृत पिलाया जब से विशनोई समाज प्रारंभ हुआ। उन दिंनो मे इन्होंने अकाल पीडिंतो और गरीबों की अन्न-दान से सहायता करके समाज को अपनाया। इन्होंने बहुत जनसमूहों में उपस्थित होकर सर्व मानव मात्रको मुख्य कर्तव्यों का साक्षात परीक्षात्मानुभव का उपदेश देते समय १२० अनमोल शब्द कहे थे जो आज भी प्रेम पूर्वक हर घर में मन्दिरों में हवन इत्यादि करते समयबोले जाते है।देश विदेशों में भ्रमण करते हुए लोगों को बिश्नोई पंथ का उपदेश दिया | गांव लालासर में विक्रमी सम्वत् 1593 इस्वी मिंगसर बदी नवमी को अंतर्ध्यानहो गए ।
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